Jaane Kahaa ??? The Revolution
अपडेट १३
बंसी उठकर चला गया और किशोरीलाल अपने रुम मे वापस आया और राजेश्वरीदेवी को सारी बात बतायी। दोनो थोडी देर के लिये सोच मे पड गये क्युकी
पिछले दो दिन से वे लोग जोधपुर आये हुये थे लेकिन करीब दो दिनो मे उन दोनो ने बहुत दुनिया पलटते हुये मेहसुस की थी। किस की बाते सुने और किस पर विश्वास करे ये समजना मुश्किल था। सोचते सोचते ही किशोरीलाल को नीन्द आ गयी थी। कुछ दो घंटे वो सोता रहा। शाम को 4.30 बजे उस की आंखे खुली और देखा की राजेश्वरी देवी रुम मे नही है। वो बाहर आया और देखा की बाहर गार्डन मे विक्रम और राजेश्वरीदेवी बाते कर रहे है और नन्हे से जय को विक्रम ने अपनी गोद मे बिठा रखा था। किशोरीलाल भी उन के साथ बैठ गया, बंसी चाय लेकर आया।
राजेश्वरीदेवी ने तुरंत कहा,”आप भी विक्रम भैया को समजाइये ना की वो शादी के लिये मान जाये।“
किशोरीलाल,”मै तो इसे सुबह से कह रहा हु, जो होना था वो तो हो चुका, ये गम मे रहेने से पुरी ज़िन्दगी नही कट सकती। आज की सोच मे रहना ही मानवधर्म है। देख वीकी तुजे आज नही तो कल शादी तो करनी ही है। क्यु ना सकारत्मक सोचना आज से ही शुरु कर दे।
विक्रम,"तु अपनी जगह शत प्रतिशत सही है दोस्त, लेकिन कभी तु अपने आप को मेरी जगह रख के सोच की बहुत कम समय मे मैने मेरे पिताजी, अंकल, आंटी और सुनंदा को खोया है। दुसरा मेरा वादा था की मै सब को तीर्थयात्रा करवाउंगा और सलामत सब को वापस भी ले आउंगा। लेकिन देख मेरा नसीब मै सब को वापस भी तो नही ले आया। तीसरा मौत भी ऐसी हालात मे हुइ है की उंगली मेरी ही तरफ उठ रही है। इस के उपर जो कीसी को पता ही नही था की सुनंदा के साथ मै मन ही मन शादी कर चुका था। अब मै कीस मुह से दुसरी शादी के लिये सोच सकता हु, ये बता!”
"आप की बातो मे बिलकुल सच्चाइ है, किन्तु हम खुद आप के साथ है। अगर सुनंदा बहन होती तो बात कुछ अलग थी।“ राजेश्वरीदेवी ने कहा और कुछ पल के बात और बोली,”एक बात सोचिये, अगर बाबा ने जो भविश्यवाणी की है अगर वो सच नही होनी थी तो सुनंदा बहन ज़िन्दा होती न।“
विक्रम कुछ समजा नही तो देखने लगा। राजेश्वरीदेवी ने आगे कहा,”समजाती हु। देखो अगर हमारे बच्चे की शादी आप की बच्ची के साथ होनी है तो अगर सुनंदाबहन ज़िन्दा होती तो कभी सम्भव ही नही थी क्युकी तो वे दोनो भाइ-बहन कहेलाते। अब अगर कुदरत ने ये निर्णय लिया है की जय की शादी आप की ही बच्ची के साथ होनी है इस का मतलब साफ है की आप के जीवन के कोइ और जरुर आनेवाली है। अगर कुदरत नही चाहती तो सुनन्दाबहन ज़िन्दा होती।“
राजेश्वरीदेवी के स्वर मे इतनी सच्चाइ थी और इतना प्रेम भरा था की बहा बैठे सब ये सोचने पर मजबुर हो गये की बात तो सच्ची ही है। उस बाबा ने किशोरीलाल को भी कुछ सहन करने की बात की थी। अगर सुनन्दा ज़िन्दा होती तो उन के और विक्रम की बेटी का रिश्ता सम्भव ही नही था। अब अगर जय की शादी विक्रम की बेटी के साथ निश्चित है तो सुनंदा की विदाइ निश्चित ही थी। और यही लोजिक सब का दिमाग के फिट बैठ गया की हालात अब यही इशारा कर रहे थी की विक्रम की अभी एक और शादी होनी ही है।
कुछ देर बाद विक्रम बोला,"शायद आप दोनो सही हो, ये अब मेरा भी मान ना है, लेकिन मुजे कुछ वक़्त तो दो इस सदमे से बाहर निकलने मे, ता की मै अपनी ज़िन्दगी फिर से सवार सकु।“
"ज़िन्दगी यु ही यहा पर बैठे बैठे नही सवरती मेरे दोस्त," किशोरीलाल ने कहा,"हम यहा आये है तो हमे जोधपुर दिखा और कुछ फ्रेश हो जा। और यहा से हमारी वापसी से पहेले हमे कुछ सकरात्मक परिणाम मिले तो हमे भी सुकुम मिले दोस्त।“
“ओह तेरी,” कह्कर विक्रम खडा हो गया,” यार मै तो भुल ही गया की आज यहा तेरा तीसरा दिन है और मै अपनी कहानी लेकर बैठा हु। मै ये भी भुल गया की आप यहा घुमने आये हो न की मेरी प्रेमकहानी सुन ने। चलो चलते है घुमने के लिये।“
और एक घंटे के बाद सब लोग घुमने नीकल गये। लगातार तीन घंटो तक पुरा जोधपुर विक्रम दिखाता रहा। वापस हवेली मे आकर सब ने खाना खाया, थोडी देर तक बाते चलती रही और किशोरीलाल ने देखा की विक्रम सुबह से लेकर अभी तक काफी फ्रेश लग रहा था। फिर रात को सब अपने अपने कमरे मे सोने चले गये। लेकिन किशोरीलाल की आखो से नीन्द गायब थी। वो सोच रहा था अभी बीजली की बातो पर से पर्दा नही हटा है और वो तसवीरे जो कन्याकुमारे के पत्थर की है जिस मे उस के बाबुजी, माताजी दिखाइ दे रहे थे, स्पष्ट तो नही था लेकिन वो कौन है जिसने वो तसवीरे खींची और कवर मे यहा तक पोस्ट कर दी। तसवीरे खीचनेवाले का मक्सद क्या था। और ऐसा क्या हुवा था की उस तसवीर को पोस्ट करने की जरुरत पडी और विक्रम ने उसे बताया तक नही। ऐसी कौन सी घटना हुयी की विक्रम उसे छुपाता था और क्या तस्वीरे खीचनेवाला विक्रम को ब्लेक्मैल करना चाहता था?
किशोरीलाल का सिर भारे हो उठा था। वो खडा हुवा और रुम से बाहर नीकला। यु ही चक्कर काटते काटते वो रुम की बाल्कनी पर पहुचा। अचानक उसे एह्सास हुवा की विक्रम के रुम की और से कुछ आवाजे आ रही है। विक्रम के रुम की लाइट्स ओफ्फ थी मगर नाइटलेम्प जल रहा था। किशोरीलाल जहा बाल्कनी मे खडा था उस की बायी ओर तीन रुम छोडकर विक्रम का कमरा था। वो रुम बडा होने से 15 फीट लम्बा था । मतलब अब किशोरीलाल की नजर मे विक्रम की रुम की दायी ओर की विंडो नजर आती थी। विक्रम के रुम की बाल्कनी थोडी आगे थी जो किशोरीलाल की नजरो से बाहर थी, क्युकी वहा से सिर्फ विक्रम के रुम का राइट व्यु नजर मे आता था, बेक व्यु बिलकुल नही।
वो रुम किशोरीलाल जहा खडा था उस से करीब 25 कदम की दुरी पर था। अंतर के हीसाब से बातचीत की आवाज स्पष्ट नही सुनाइ देनी चाहिये थी लेकिन रात का सन्नाटा और बातचीत ज्यादा नोर्मल से कुछ उची आवाज मे हो रही थी। आवाज स्पष्ट आ रही थी लेकिन शब्द पकडे नही जा रहे थे। किशोरीलाल का मन हुवा के वो विक्रम के रुम मे जाकर पता लगाये की आखिर माजरा क्या है, मगर फिर उस ने अपने कदम वही जमाये रखे और सुन ने की कोशिश करने लगा।
कुछ पल इंतेजार करने के बाद किशोरीलाल की कानो मे कुछ शब्द पडने लगे, अभी भी स्पष्ट नही सुनाइ देता था, मगर फिर भी आवाज कुछ उची हुयी और किशोरीलाल की इंतेजारी बढ गयी। वो वापस मुडा बाल्कनी से रुम मे
आया और आवाज ना हो इस तरह रुम का दरवाजा खोल के बाहर नीकला और रुम से होकर विक्रम के रुम मे जाने के लिये जैसे ही कदम वापस उठाये की उस ने विक्रम के रुम के पिछेवाले भाग से जहा उस रुम की बाल्कनी पडती थी वहा से 25 कदम दुर एक आदमी का साया देखा।
किशोरीलाल सांस थामे उस को पहेचान ने की कोशीश करने लगा। किशोरीलाल खुद अन्धेरे मे था और वो साया धीरे धीरे उस के रुम की तरफ आगे बढता रहा। किशोरीलाल की धडकने तेज होती चली गयी। वो एक नजर से उसे देख रह था। कुछ देर मे वो साया उस के बहुत करीब आया लेकिन रात का अन्धेरा था तो अभी भी चेहरा देखना मुश्किल था। फिर अचानक वो साया आधे रास्ते आकर रुक गया और कुछ पल खडा रहा। शायद उस साये को एहसास हो रहा था की कोइ वहा खडा है और उस साये ने भागना शुरु किया। बंगलो के पीछे के रास्ते से वो कहा गायब हो गया ये किशोरीलाल की समज मे बिलकुल नही आया।
किशोरीलाल सोचता ही रह गया की वो कौन था, क्यु आया था? और विक्रम के रुम मे क्यु था और वापस उस के रुम तरफ क्यु आया और कुछ न कर के भाग खडा हुवा? और अगर भागा है तो जरुर कुछ गलत काम कर के गया है। अब आधी रात को ये सारे सवालो के जवाब मिलने मुश्किल थे इसिलिये 15 मिनिट के बाद किशोरीलाल वहा खडा रहा और सोचता रहा बाद मे फिर से रुम मे आकर बेड पर पडा। करीब एक घंटे तक वो तरह तरह बाते सोचता रहा की अखिर माजरा क्या है? उन के साथ क्या हो रहा था? क्या विक्रम सही मे कुछ मुसिबत मे तो नही? या फिर वो खुद मुसीबत को दावत दे तो नही रहा? आखिर थक कर हारकर उस ने इश्वर को प्रार्थना की और नीन्द की आगोश मे खो गया।
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दुसरे दिन की सुबह भी किशोरीलाल कुछ देर से उठा। तब तक राजेश्वरीदेवी पुजा-पाठ कर के रसोइघर मे बंसी के पास पहुच चुकी थी। सुबह के नित्यक्रम निपटाकर जैसे ही किशोरीलाल रुम मे बाल सवार रहा था और बंसी और राजेश्वरीदेवीचाय लेकर आये। किशोरीलाल ने विक्रम मे लिये पुछा तो बंसी ने बताया की विक्रम अभी सो रहा है। इसिलिये किशोरीलाल ने बंसी को इशारा किया की वो वही रुके।
कुछ देर बाद किशोरीलाल ने चाय खत्म की और बंसी को कल रात वाली रात बताइ और पुछा,”क्या कल रात कोइ यहा आया था?”
बंसी,"नही तो भैया, मेरी नज़र मे तो रात को कोइ नही आया था।"
किशोरीलाल,"तुम ने विक्रम से कल रात कितने बजे आखरी बात की थी?"
बंसी,"मै करीब रात को 10.30 बजे बाबा को मिला था, उस ने सिरदर्द की दवाइया मांगी थी।“
"जरुर रात को फिर से शराब पिया होगा", धीरे स्वर मे किशोरीलाल ने बोला और बंसी चुप रहा और अपनी आंखे जुका ली और सब से समज लिया की विक्रम ने कल भी पी के रखी थी।
"इस के शराब की कोइ दवा है बंसी ?", किशोरीलाल ने पुछा।
"शायद नही," इस बार राजेश्वरीदेवी ने जवाब दिया।
“और वो नालायक रामेश्वर का आनाजाना बन्ध हो जाये तो....”बंसी ने बात अधुरी छेड दी थी।
बहुत देर तक सोचने के बाद किशोरीलाल ने कहा,”हम्म वो रामेश्वर ही था। नीचे धोती जैसा कुछ पहना था। अन्धेरे मे चेहरा तो नही देख सका मगर दाल मे कुछ काला तो है। वो मेरी रुम की तरफ क्यु आ रहा था और विक्रम से क्या बातचीत कर रहा था? लगता है विक्रम से ही कुछ पुछना पडेगा।“
बंसी,”भैया, मै चलु अब यहा से? बाबा अगर उठ जायेंगे और मुजे यहा देख लेंगे तो बडी मुसिबत आ जायेगी”। बंसी धीरे से खडा हुवा।
बंसी के जाने के बाद किशोरीलाल ने कहा,”कुछ समज मे नही आ रहा की क्या करु ? एक तरफ से विक्रम को बचाना चाहता हु और दुसरी तरफ से मुजे ही मालुम नही की विक्रम क्या रहा है?”
“ये बंसी भैया भी न जाने क्यु डरते है। वो नौकर थोडे ही है ? चलो अंकल ने उसे यहा नौकरी के लिये राजी कर लिया है और उस की बहन क्रिश्ना को सेट कर दिया लेकिन अब तो उसे क्या डर होना चाहिये? उस की बहन भी अब तो सलामत है, सेट है और अंकल भी अब तो नही रहे तो बंसी भैया को गुलामी क्यु करनी चाहिये? राजेश्वरी देवी बोल उठी।
“तु एक्दम सही है। मगर बंसी खानदानी है और खानदानी लोग आसानी से मुसिबत से भागते नही। और ये तो विक्रम पे जान छिडकता है” किशोरीलाल ने जवाब दिया।
“चाहते तो हम भी है विक्रम भैया को, अगर विक्रमभैया आप पर हाथ उठाये और गुलामी करवाये तो क्या आप सहन करते फिरोगे या आवाज उठाओगे ? और अगर नमकहलाली खुन मै है तो यहा से भाग जाओगे, कभी सहन करते पडे नही रहोगे। यहा बंसी भैया ने ऐसा कुछ नही किया है और सिर्फ गुलामी ही की है। आप को ये बात पता करनी ही चाहिये क्युकी मुजे अभी भी बंसीभैया कुछ मौन दीख रहे है जैसे अभी भी वो बहुत कुछ जानते हो।“ राजेश्वरी देवी ने कुछ सत्य वचन निकाले।
“बात तो तेरी ठीक है, चल मै ये भी बंसी से ही पुछ लेता हु” किशोरीलाल ने मुस्कुराकर हामी भर दी।,”लेकिन अभी इस बात का क्या करु ? अगर रामेश्वर ही कल रात था तो वो हमारी रुम तरफ क्यु आ रहा था?”
“मुजे तो यहा बडा जोखिम दिखाइ दे रहा है, आप को क्या लगता है” राजेश्वरीदेवी ने कुछ असमंजस मे पुछा।
“मुजे भी कुछ अजीब सा माहोल दीख रहा है। मुजे मेरी नही तुम दोनो की चिंता है, मै चाहता हु की तुम दोनो जल्द से जल्द यहा से चले जाओ”, किशोरीलाल ने कहा।
राजेश्वरीदेवी ने तुरंत मे जवाब दिया,” ना बाबा ना, मै आप को अकेले छोडकर कभी भी नही जाउंगी, जो आप का होगा वो ही मेरा होगा। आगे देखा जायेगा लेकिन जब जायेंगे तो साथ ही जायेंगे” अब उस ने किशोरीलाल का हाथ पकड लिया था।
किशोरीलाल ने मुस्कुराकर राजेश्वरीदेवी को हाथो का सहारा देते हुये कहा,”ठीक है जैसा तुम चाहो।“
फिर दोनो नीचे बगीचे मे पहुचे और बातचीत करने लगे, कुछ देढ घंटॆ बाद विक्रम फ्रेश होकर वहा आया जब ये दोनो उस के इंतेजार मे बैठे हुये थे। विक्रम ने आते ही जय को उठा लिया और कुछ देर उस से खेला फिर राजेश्वरी देवी जय को लेकर रुम मे चली गयी क्युकी वो जानती थी की उस के सामने विक्रम ज्यादा बोलेगा नही आखिर मर्यादा भी तो कुछ चीज होती है।
कुछ मिनिट तक दोनो मे से कोइ नही बोला और विक्रम ने किशोरीलाल के सामने देखकर बोला,”तो आज क्या पुछना है के.पी., मै तैयार हु बोल”। किशोरीलाल को बहुत आश्चर्य हुवा और बोला,”तुजे कैसे पता के मै तुजे कुछ पुछनेवाला हु?”।
विक्रम जोर से हस दिया,”तेरी ये शंका भरी सुरत ही बताती है की तु जरुर कुछ इंवेस्टिगेशन करेगा। इनफेक्ट तुजे तो सी.बी.आइ. मे होना चाहिये था।“ आज बडा फ्रेश दीख रहा था विक्रम।
मौका देखकर किशोरीलाल ने सीधा बाउंसर मार दिया,”कल कौन आया था यहा?”
बीना एक पल बीताये विक्रम ने जवाब दिया,”रामेश्वर”।
चाय पीते पीते विक्रम आगे बोला,”के.पी. तु आगे कुछ पुछ उस के पहले मै तुजे बता दु की मुजे और उसको रात को शराब पीने की आदत पड चुकी है। इतने सारे घाव को सहन करते करते मै कुछ ज्यादा ही शराब का आदी हो चुका हु। अब तेरे आने के बाद कल से मै कुछ सुकुन पा रहा हु। अब ये रामेश्वर को थोडे ही पता है की कल से मुजे थोडा आराम मिला है। वो तो आ गया रोज की तरह और मैने भी कल खुशी मे पी थी यार। आज तक गम मे पीता रहा मगर कल मैने खुश होकर पी डाली। देख गुस्सा मत करना अब तक मेरी जिन्दगी मे कइ दिनो से खुशिया नही थी आज थोडी सी आइ है तो पी लिया यार। थोडा तो हक बनता है की नही” एक ही स्वास मे विक्रम ने बोल दिया और किशोरीलाल के पास इस का कोइ जवाब नही था ।
“ठीक है इस वक़्त मुजे कोइ ऐतराज नही। मगर कल रात रामेश्वर मेरे रुम की ओर क्यु आ रहा था?” किशोरीलाल ने आराम से पुछा।
“तुजे पार्टी मे शामिल करने के लिये। उस बेवकुफ को मैने कितना समजाया की तु नही पीता तो केहता है की मेरे होते हुये ये सम्भव ही नही की कोइ पिये बीना रह सके। मेरे लाख मना करने के बावजुद भी वो उस तरफ आया होगा”, विक्रम ने भी बडे आराम से जवाब दिया।
“विक्रम, कोइ दावत देने आता है तो आगे से आता है, न की कीसी के कमरे के पीछे से। और अगर कोइ दावत देने आता है तो मुजे देखकर भाग नही जाता” किशोरीलाल ने दलील पेश की।
“वो पुरी बोतल खाली कर गया था। इसिलिये उसे कहा पता था की आगे जा रहा है की पीछे से भाग रहा है। इसिलिये शायद पीछे से आता होगा और तुजे देखकर गभराकर भाग गया होगा, इस मे कौन से बडी बात है।“विक्रम ने भी सफाइ पेश की।
“ठीक है चल मै ये मान भी लु की तु जो कह रहा है वो एकदम सही है लेकिन भागते वक़्त तो पी हुयी नही लग रही थी, बडी तेजी से भाग गया था।“ किशोरीलाल ने फिर से सवाल किया।
“अब इस मे मै क्या करु बोल की उस के मन मे क्या चल रहा है? तु खुद ही उसे पुछ लेना बस” विक्रम ने हारकर धीरे से बोलकर अपना सिर कुर्सी पर हवा मे लटका दिया।
“तुजे बुरा लगता है ना विकी, लेकिन मै अकेला नही हु दोस्त, मेरी बीवी, तेरी भाभी भी उस रुम मे सोयी रहती है। अगर मुजे बुलाना भी होता तो आगे से आना चाहिये न लेकिन मै सच कहता हु जैसे मैने उसे देखा और जैसा की वो भागा है, मेरा मन कहता है दोस्त ये आदमी ठीक नही है तेरे लिये। शायद तेरे लिये बडी मुसिबत खडी कर सकता है” किशोरीलाल ने समजाने का प्रयास किया।
इस बार विक्रम ने कुछ जवाब नही दिया और चुप ही रहा इसिलिये कुछ देर तक किशोरीलाल भी चुप ही रहा।
अब किशोरीलाल ने उचित नही समजा की विक्रम से इस बारे मे ज्यादा बात करे। विक्रम कुछ देर बाद अन्दर चला गया और बंसी उधर आया।
“बंसी मै कुछ पुछना चाहता हु” किशोरीलाल ने उसे बिठाया।
“पुछिये ना भैया”,बंसी ने जवाब दिया. कुछ देर किशोरीलाल सोचता रहा और फिर बोला,”बंसी, इस रामेश्वर का आनाजाना कब से शुरु हुवा था?”
“भैया, ये तो मै यहा आया उस से पह्ले भी आता होगा, लेकिन ये बाबा तीर्थयात्रा से जब वापस आये तब से कुछ ज्यादा ही आने लगा है। और खास कर के रात को तो यही होता ही है। वोही बाबा को बिगाडता है। पता नही बाबा भी ऐसे आदमी के साथ क्यु रिश्ता रखते है” बंसी ने जवाब दिया।
“ओ.के. अब दुसरी बात, ये वीकी तेरा इतना अपमान करता है, तु क्यु अभी तक यहा पडा है?” इस बार किशोरीलाल जैसे ब्रह्मास्त्र छोड दिया था क्युकी इस सवाल से बंसी चौक उठा था।
“भैया...” उस की जुबान थोडी से लडखडाइ और आवाज मे खर्राश पैदा हो गइ थी,”मेरा तो फर्ज है ना...और ऐसे भी मेरा बाबुजी के साथ यही वचन था की मै मरते दम तक बाबा के साथ ही रहुंगा। मै बाबा को छोडकर कही नही जा सकता” बंसी की आंखो मे चमक दीखाइ दे रही थी।
किशोरीलाल उस की और सीधा देखता रहा और बंसी जैसे नजरे चुरा रहा था। अखिर मे किशोरीलाल ने एक और मास्टरस्ट्रोक लगा ही दिया,”तेरी बहन क्रिश्ना कहा है?”
बंसी फटी आंखो से किशोरीलाल को देखता ही रह गया। कुछ देर तक वो यु ही देखता रहा जैसे उस की जहन मे से आवाज नही नीकल रही थी। किशोरीलाल ने एक और आखरी स्ट्रोक लगा ही दिया,”बंसी तेरी बहन की ज़िन्दगी के बदले तुने अपनी जिन्दगी दाव पे लगाइ है ना?”। बंसी ने हा मे सिर हीलाया क्युकी अब उस की आंखो के कोने पर आंसु थम चुके थे।
“और ऐसे आदमी से तुजे अपनी बहन ज्यादा प्यारी है ना?” किशोरीलाल वार पे वार किये जा रहा था। बंसी ने फिर से हा मे सिर हीलाया।
अब किशोरीलाल ने तीर सिधा निशाने पर लगाने का निर्णय कर के पुछा,”अगर तेरी बहन क्रिश्ना की ज़िन्दगी विदेश मे आराम से गुजर रही है तु कीस लिये यहा वी.की. के पास ऐसी हालत मे पडा है? देख सच बता की तेरी असली मजबुरी क्या है? अगर देर हो गयी तो मै कुछ नही कर पाउंगा” और ये सवाल वज्रघात हुवा था बंसी पर।
मगर फिर भी बंसी चुप रहा और अब अश्रुधारा बह उठी थी।
किशोरीलाल कुछ देर चुप रहा लेकिन मन ही मन निश्चय कर लिया था की आज बंसी का मौन तुडवाके रहेगा और इसिलिये पुछा,”बंसी, मेरे दोस्त, बोलेगा तो तेरा मन हलका हो जायेगा। तुजे तेरी इक्लौती बहन का वास्ता।“
बंसी के लिये इतना ही बस था, अपना मुह पोछते हुये खडा हुवा और भागते भागते इतना ही बोल सका,”आज रात को बताउंगा”। और तेज कदमो से भाग उठा।
किशोरीलाल उसे भागते हुये देखते ही रह गया और रात का इंतेजार करने लगा।
शाम तक मुश्किल से किशोरीलाल ने समय काटा। शाम को कुछ लोग विक्रम से मिलने आये जिसे मिलने का किशोरीलाल को कोइ मन नही था और सुबह की बातचीत से विक्रम भी उखडा हुवा था तो उस ने भी कोइ फोर्मालीटीज नही की। इधर किशोरीलाल सोच रहा था की कब रात आये और एक और राज जान ने को मिले, क्युकी जितना वो जान चुका था उस से कोइ निर्णय सम्भव नही था। उस के मन मे चल रहा था की क्या विक्रम सच बोल रहा है या आधा सच या बिलकुल सफेद जुठ बोलकर कोइ बडी चालाकी कर रहा है। एक तरफ उस का दिमाग उस के दिल की सोच से बरोबर मिलता था और दुसरी तरफ उस का मन अपने दोस्त पर विश्वास करने पर तुला हुवा था। अब वो खुद असमंजस मे था की सच क्या है और कैसे विक्रम को वो समजाये?
जो महेमाना आये थे वो सब बाहर नीकले और एक नजर किशोरीलाल ने सब पर डाली। सब के चेहरे को देखा और सोचा की कोइ
भी एक भी चेहरे अच्छे इंसान के नजर नही आ रहे थे। किशोरीलाल अन्दर गया और उसे बहुत इच्छा हुइ की विक्रम को उन मेहमानो के बारे मे पुछे। लेकिन सुबह जो हुवा था इसिलिये विक्रम को ज्यादा पुछ्कर वो उस का विश्वास खोना नही चाहता था। इसिलिये वो चुप रहा और विक्रम ने भी उन लोगो के बारे मे कुछ नही बताया। जब रात के खाने पर सब इकठ्ठा हुये तब कुच नोर्मल वातावरण था। इसिलिये बाते करते करते डीनर खत्म कर दिया गया और किशोरीलाल ने नीन्द का बहाना कर के अपने रुम की और चल दिया। विक्रम को तो ऐसा ही माहोल चाहिये था। वो भी अपनी रुम मे चला गया। एक घंटॆ के बाद किशोरीलाल चुपके से रुम से बाहर आया और नीचे रसोइघर की ओर चल दिया। रसोइघर बन्ध था तो किशोरीलाल बाहर मुख्य दरवाजे की तरफ जाने लगा की उस ने बंसी को उस की तरफ आते देखा। दोनो जैसे मीले की किशोरीलाल उस का हाथ पकडकर अपने रुम मे ले गया। अपने रुम मे जाकर किशोरीलाल ने लाइट्स ओफ्फ किये और सिर्फ लाइट लेम्प जलाये रखा। किशोरीलाल ने इशारो से समजाया की विक्रम को पता नही चलना चाहिये की बंसी को इस रुम मे बुलाया गया है।
कुछ देर बाद बंसी ने बताना शुरु किया जो कुछ इस तरह से था।...........
ये तो सब को पता था की विक्रम के पिताजी गंगाधर ने ही बंसी को यहा नौकरी पर रखा था और बंसी की बहन क्रिश्ना को विदेश पढने के लिये स्टेट के खर्चे पर भेज दिया गया था। क्युकी अगर क्रिश्ना यहा रहती तो प्रिंस उसे मार डालता और शायद ऐसा नही होता तो प्रिंस की बदनामी होती और साथ मे विक्रम की भी बदनामी होती। और ये भी तय हुवा था की बंसी के रीपोर्ट पर किशोरीलाल के पिता नारायणप्रसाद विक्रम के खर्चेपानी का पैसा पास करेंगे क्युकी नारायणप्रसाद को गार्डियन बनाया गया था। जब विक्रम को खर्चे की कमी मेहसुस हुयी तो उस ने प्रिंस को बताया, प्रिंस ने बंसी को समजाया की अगर वो हर बार विक्रम की अच्छी खबर नारायणप्रसाद तक पहुचाये और विक्रम को वफादार रहे तो उसे भी बहुत कुछ अच्छी रकम मिलती रहेगी और साथ मे क्रिश्ना का खयाल भी रखा जायेगा।
बस कहानी यहा से ही शुरु होती है। बंसी पढालीखा आदमी था। उसे मालुम था की हा बोलेगा तो गंगाधर के साथ गद्दारी करेगा और विक्रम को आज़ादी मिल जायेगी तो उन का कोंट्राक्ट केंसल हो जायेगा, और दुसरी तरफ अगर वो ना बोलता है तो प्रिस और विक्रम दोनो उसे खा जायेंगे और बहन क्रिश्ना का भी बहुत कुछ बीगाड सकते थे। एक राज की बात बंसी जानता था जो समाज के डर से बंसी ने सब से छिपायी थी।
बंसी के पिताजी को मालुम था की प्रिंस का चक्कर उस की बेटी क्रिश्ना के साथ है मगर उसे ये आश थी की क्रिश्ना अगर राजघराने की बहु बनेगी और कुछ लाभ उस को भी मिल जायेगा। लेकिन विक्रम का भी चक्कर क्रिश्ना के साथ चालु था ये बात सिर्फ क्रिश्ना और बंसी ही जानते थे। जब क्रिश्ना को विदेश भेजने का तय हुवा तब ये भी तय हुवा की बंसी के पिताजी भी साथ चले जाये और दोनो चले गये थे और आज तो बंसी के पिताजी जिन्दा भी नही थे। उस वक़्त बंसी अकेला था वो इन सब के खिलाफ था। वो चाहता था की कुछ ऐसा हो की उन की वफादारी भी कायम रहे और उस की बहन क्रिश्ना भी सुरक्षित रहे और बंसी ने उन का हल आखिर निकाल लिया।
क्रिश्ना पेट से है वो बात बंसी की चाल थी क्युकी दोनो भाइ-बहन देखना चाहते थे की क्रिश्ना के पेट मे प्रिंस का बच्चा है इस बात से प्रिंस
का क्या जवाब होगा? और आखिर मे वही हुवा जो बंसी ने सोचा था। प्रिंस अब क्रिश्ना को मारने पर तुला हुवा था । हकीकत मे क्रिश्ना के पेट मे कभी बच्चा था ही नही। अब क्रिश्ना को जब विदेश भेजने का तय हुवा तब भी बंसी मान के चलता था की प्रिंस और विक्रम के हाथ विदेश तक भी तो पहुच सक्ते थे। और वैसे भी इन दोनो को जब पता चले की क्रिश्ना कभी गर्भ से थी ही नही तब तो पुरा कोंट्रेक्ट ख्तम हो जाता और क्रिश्ना कभी जिन्दा रहेती ही नही और इसिलिये बंसी ने एक चाल चली।
क्रिश्ना विदेश जा रही थी उस से अगली रात को प्रिंस, क्रिश्ना और विक्रम की एक आखरी मुलाकात उस ने प्लान की। ये मुलाकात विक्रम के बंगलो पर रखी गयी। दुसरे दिन क्रिश्ना जा रही थी इसिलिये अगली रात को विक्रम और प्रिंस ने बहुत शराब पी रखी थी। क्रिश्ना अकेली प्रिंस के पास गइ और रोने लगी की अब उस का क्या होगा? उस के बच्चे का क्या होगा? विक्रम बाहर बैठे बैठे इंतजार कर रहा था और शराब पी रहा था। लेकिन उस रात को पता नही था की एक और कहानी बन ने वाली है।
उस रात प्रिस और विक्रम दोनो का मुड क्रिश्ना की इज्जत लुटने का था। लेकिन प्रिंस की हाजरी मे कभी विक्रम कुछ नही कर सकता था। दुसरा क्रिश्ना को कइ बार विक्रम पटाने की कोशिश कर चुका था लेकिन क्रिश्ना का ख्वाब हमेशा उस के पिताजी पर निर्भर था मतलब राजघराने की बहु बन ने का। हर वक़्त प्रिंस नाकामयाब रहता था क्युकी हर वक़्त क्रिश्ना उसे इतना शराब पीला देती थी की उस की इज्जत पर अभी तक आंच नही आयी थी लेकिन ये बात विक्रम नही जानता था। आज बात कुछ अलग थी और विक्रम ने कुछ और सोच रखा था और उस ने रामेश्वर को बुलाकर प्रिंस का इलाज करने को कहा। रामेश्वर ने फिर वोही औषधिया बनाइ और प्रिंस को पीला दी थी। 5 मिनिट मे ही प्रिंस ढेर हो गया और रामेश्वर ने विक्रम को बता दिया की काम बन चुका है।
रामेश्वर ने विक्रम को बता दिया की अब प्रिंस करीब 6 घंटे के लिये बेहोश रहेगा। उस की हाजरी मे भी अगर आप कुछ भी करोगे तो कीसी को कुछ पता नही चलनेवाला। विक्रम ने रामेश्वर को राजी कर दिया और खुद उपर जा के क्रिश्ना के सामने खडा हो गया। अब जब विक्रम ने किश्ना को पटाने की कोशिश की तो क्रिश्ना ने इन्कार कर दिया और खुद घर जाने को तैयार हो गयी। मगर आज विक्रम उसे भोगतने पर तुला हुवा था। अब अंजाम ना जाने क्या होनेवाला था????
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Seema Priyadarshini sahay
07-Feb-2022 04:37 PM
बहुत ही शानदार लेखन
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PHOENIX
19-Feb-2022 04:34 PM
Thank you so much.
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Rohan Nanda
05-Jan-2022 05:45 PM
पहली बार कोई ऐसी कहानी मिली है जिसे पढ़ कर दिमाग का दही बनना कहावत सच हो रही है।कहां कहां सस्पेंस दिया स्टोरी में। अगले भाग की प्रतीक्षा...
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PHOENIX
05-Jan-2022 05:54 PM
मेरा लिखते वक़्त दिमाग का दही हो गया था। धन्यवाद आप का। अभी सस्पेंस सिर्फ शुरु हुये है। इस कहानी मे पुराने, आधुनिक और आनेवाले युग के सारे गुण समाहित है। धन्यावाद और बने रहिये इस कहानी पर।
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🤫
05-Jan-2022 04:24 PM
ओह गॉड, ये एक और सस्पेंस..! कृष्णा कितनी स्मार्ट निकली। लेकिन विक्रम ऐसा क्यों निकला। एक तरफ सुनंदा की गैर हाजिरी में विधुर कहलाना पसंद करता है और दूसरी तरफ कृष्णा के सामने चला आया नशे में। आई थिंक कृष्णा कभी विदेश गई ही नही है। वह इंडिया में ही है कहीं, लेकिन कहां ये कोई नही जानता। सिवाय बंसी के। देखते है बंसी आगे क्या राज खोलता है। बेहतरीन कहानी।
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PHOENIX
05-Jan-2022 05:25 PM
हे भगवान, क्या करु मै आप का ????????????????????????????। ये सुनंदा की मौत से पहेले की कहानी है।
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